महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के कुछ गांवों में एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है, जहां सैकड़ों ग्रामीणों के बाल अचानक झड़ गए, जिससे वे पूरी तरह गंजे हो गए। इस चौंकाने वाली घटना के पीछे पंजाब से आए गेहूं के आटे को जिम्मेदार बताया जा रहा है। यह दावा मशहूर फिजिशियन और पद्मश्री सम्मानित डॉ. हिम्मतराव बावस्कर ने किया है।
बाल झड़ने की वजह गेहूं का आटा?
डॉ. हिम्मतराव बावस्कर, जो कोंकण के महाड में रहते हैं और बिच्छू के डंक का इलाज खोजने के लिए प्रसिद्ध हैं, ने इस मामले पर गहन अध्ययन किया। उन्होंने बताया कि बुलढाणा जिले के प्रभावित गांवों में पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (PDS) के तहत वितरित किए गए गेहूं के सेवन के बाद लोगों के बाल झड़ने लगे।
सेलेनियम की अधिकता बनी मुख्य कारण
डॉ. बावस्कर के मुताबिक, इन गांवों में वितरित किए गए गेहूं में सेलेनियम की मात्रा सामान्य से अधिक पाई गई, जबकि जिंक की मात्रा बेहद कम थी। यह असंतुलन बाल झड़ने का कारण बन सकता है। बुलढाणा जिले के करीब 15 गांवों के 300 से अधिक लोग इस समस्या से प्रभावित हुए हैं।
प्रशासन और वैज्ञानिक हरकत में
जैसे ही ग्रामीणों के बाल झड़ने की खबर फैली, प्रशासन तुरंत हरकत में आ गया। प्रभावित इलाकों के पानी के सैंपल लिए गए और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के वैज्ञानिकों ने भी पानी और मिट्टी के नमूने जांच के लिए इकट्ठा किए।
गांव के सरपंच भी हुए प्रभावित
भोनगांव के सरपंच, जिनके खुद के बाल झड़ गए थे, के घर से लिए गए गेहूं के सैंपल की जांच में सेलेनियम की अधिक मात्रा पाई गई। डॉ. बावस्कर के अनुसार, सेलेनियम एक मेटलॉइड धातु है, जिसमें धातु और गैर-धातु दोनों के तत्व होते हैं। यह शरीर के लिए आवश्यक है, लेकिन इसकी अधिक या बहुत कम मात्रा से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
ICMR ने केंद्र सरकार को सौंपी रिपोर्ट
ICMR द्वारा किए गए अध्ययन में भी इस बात की पुष्टि हुई है कि जिन लोगों के बाल झड़ गए, उनके खून में सेलेनियम की मात्रा सामान्य से अधिक थी। इस रिपोर्ट को केंद्र सरकार को सौंप दिया गया है, लेकिन रिपोर्ट के अन्य निष्कर्षों के बारे में विस्तृत जानकारी अभी सामने नहीं आई है।
अभी और जांच की जरूरत
बुलढाणा की इस घटना ने प्रशासन और वैज्ञानिकों को हैरान कर दिया है। फिलहाल, विशेषज्ञ यह पता लगाने में जुटे हैं कि गेहूं में सेलेनियम की मात्रा क्यों अधिक थी और क्या इसका स्रोत पंजाब का गेहूं ही है? जब तक पूरी जांच पूरी नहीं होती, प्रभावित गांवों के लोग चिंता में हैं और इस समस्या का समाधान चाहते हैं।