Jaya Kishori on Mahakumbh: जया किशोरी से महाकुंभ में स्नान को लेकर जब सवाल किया गया तो उन्होंने बड़ी साफगोई से जवाब दिया। उन्होंने कहा, “देखिए, महाकुंभ में कौन डुबकी लगा रहा है और कौन नहीं, ये मायने नहीं रखता। कौन अच्छा है या कौन बुरा, इसका निर्णय मैं नहीं कर सकती।
जया किशोरी ने कहा कि एक बात जरूर समझ लीजिए कि डुबकी लगाने मात्र से आपके सारे पाप नहीं धुल जाते। केवल वे पाप धुलते हैं जो गलती से या अनजाने में किए गए होते हैं, जबकि सोची-समझी और योजनाबद्ध गलतियां नहीं मिटतीं।”
उन्होंने आगे कहा, “यदि कोई व्यक्ति सोच-समझकर किसी को कष्ट पहुंचाता है, तो गंगा मैया भी उसके उन पापों को नहीं धो सकतीं। ऐसे कर्मों का फल अवश्य मिलेगा। ये अलग बात है कि कौन स्नान कर रहा है और उसने अपने जीवन में क्या किया है, लेकिन कर्मों की सजा से कोई नहीं बच सकता।”
महाकुंभ में युवाओं की भागीदारी पर विचार
जब जया किशोरी से नवयुवकों की महाकुंभ में सक्रिय भागीदारी को लेकर सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा, “हमारा देश बदलाव की ओर बढ़ रहा है और लोग भक्ति व आध्यात्म की ओर अधिक झुकाव दिखा रहे हैं। आज की युवा पीढ़ी खुली मानसिकता के साथ आध्यात्म और भक्ति की राह पर आगे बढ़ रही है, जो कि एक सकारात्मक संकेत है।”
महाकुंभ में हुई दुर्घटनाओं पर संवेदना
महाकुंभ के दौरान हुई दुर्घटनाओं पर अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, “जिन लोगों को इस हादसे में नुकसान पहुंचा है, उनके लिए कोई भी दवा या सांत्वना उनके दर्द को पूरी तरह कम नहीं कर सकती। हम उनके दुख को पूरी तरह समझ नहीं सकते, लेकिन हम उनके साथ खड़े हो सकते हैं और संवेदनशीलता दिखा सकते हैं। साथ ही, ऐसी घटनाओं से सीख लेते हुए हमें महाकुंभ जैसे बड़े आयोजनों में अधिक अनुशासन और मर्यादा बनाए रखने की जरूरत है।”
क्या नास्तिक व्यक्ति आध्यात्मिक हो सकता है?
जब जया किशोरी से ये पूछा गया कि क्या कोई नास्तिक व्यक्ति आध्यात्मिक हो सकता है, तो उन्होंने इसका तर्कसंगत उत्तर दिया। उन्होंने कहा, “यदि आप वास्तव में आध्यात्मिक हैं, तो आपको किसी न किसी रूप में एक शक्ति को स्वीकार करना होगा। यहां शक्ति का अर्थ कर्म और सच्चाई से है। यदि कोई व्यक्ति केवल स्वयं को ही सर्वोपरि मानता है और किसी भी शक्ति में विश्वास नहीं रखता, तो वह आध्यात्मिक नहीं हो सकता। आध्यात्मिकता का सीधा संबंध आत्मज्ञान, सत्य और कर्म से होता है।”
जया किशोरी ने महाकुंभ, भक्ति, आध्यात्म और जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर अपने विचार स्पष्ट रूप से रखे। उनका मानना है कि केवल धार्मिक अनुष्ठानों से जीवन के पाप नहीं धुलते, बल्कि सही कर्म और नैतिकता को अपनाना आवश्यक है। साथ ही, उन्होंने युवाओं के आध्यात्मिकता की ओर बढ़ते रुझान को सकारात्मक रूप में देखा और बड़े धार्मिक आयोजनों में अनुशासन व मर्यादा बनाए रखने की जरूरत पर बल दिया।