Muslim आबादी 51% से ज्यादा हुई तो लोकतंत्र खत्म- Nitin Gadkari

Nitin Gadkari HCN News
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केंद्रीय मंत्री Nitin Gadkari ने हाल ही में एक पॉडकास्ट में ऐसा बयान दिया है, जो चर्चा का विषय बन गया है। उन्होंने कहा, “इतिहास इस बात का गवाह है कि दुनिया के जिन देशों में मुस्लिम आबादी 51% से ज्यादा हुई, वहां लोकतंत्र, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता समाप्त हो गई।”

क्या कहा गडकरी ने?

गडकरी ने अपनी बात को ऐतिहासिक संदर्भ में पेश करते हुए कहा कि ये एक पैटर्न है जो अलग-अलग देशों में देखा गया है। हालांकि, उन्होंने ये भी स्पष्ट किया कि ये उनका निजी दृष्टिकोण है और इसे एक चेतावनी के रूप में देखा जाना चाहिए।

उन्होंने कहा, “भारत की खूबसूरती इसकी विविधता और लोकतांत्रिक प्रणाली में है। हमें इस लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए हर धर्म और समुदाय का सम्मान करना होगा, लेकिन हमें इतिहास से सीखना भी होगा।”

पॉडकास्ट का संदर्भ

गडकरी ने ये बयान ‘भारत और इसकी विविधता’ विषय पर चर्चा के दौरान दिया। उन्होंने ये भी जोड़ा कि भारत की ताकत उसकी सांस्कृतिक विविधता और सहिष्णुता में है, लेकिन इसके लिए संतुलन बनाए रखना जरूरी है।

राजनीतिक प्रतिक्रिया

गडकरी के इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में बहस छिड़ गई है।

  • कांग्रेस ने इसे एक “ध्रुवीकरण की कोशिश” बताया।
  • भाजपा के अन्य नेताओं ने गडकरी के बयान को समर्थन देते हुए कहा कि ये “आंकड़ों और ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित” है।
  • समाजवादी पार्टी और अन्य विपक्षी दलों ने इसे धर्मनिरपेक्षता पर हमला करार दिया।

सोशल मीडिया पर बहस

गडकरी के इस बयान ने सोशल मीडिया पर भी हलचल मचा दी है।

  • कुछ यूजर्स ने इसे साहसिक और सटीक बताया।
  • वहीं, अन्य ने इसे भड़काऊ बयान कहकर आलोचना की।

गडकरी का ट्रैक रिकॉर्ड

गडकरी, जो अपने इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स और विकास के एजेंडे के लिए जाने जाते हैं, आमतौर पर विवादों से दूर रहते हैं। लेकिन उनका ये बयान निश्चित रूप से उनके सार्वजनिक छवि में एक नया आयाम जोड़ता है।

क्या है ऐतिहासिक संदर्भ?

गडकरी का बयान कुछ ऐसे देशों का जिक्र करता है, जहां मुस्लिम आबादी बढ़ने के साथ राजनीतिक और सामाजिक संरचनाओं में बदलाव देखा गया। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि हर देश का इतिहास और परिस्थिति अलग होती है, और इसे एक सार्वभौमिक सत्य के रूप में देखना उचित नहीं है।

आगे का असर

गडकरी का ये बयान आने वाले दिनों में राजनीतिक बहस का केंद्र बना रहेगा। ये देखना दिलचस्प होगा कि उनकी पार्टी और अन्य दल इसे कैसे आगे बढ़ाते हैं। नितिन गडकरी का ये बयान निश्चित रूप से विचारणीय है, लेकिन इसे ऐतिहासिक तथ्यों और वर्तमान परिस्थितियों के साथ संतुलित दृष्टिकोण से देखना जरूरी है।

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