अघोरियों का जीवन जितना रहस्यमयी होता है, उतना ही अनूठा और विचित्र उनका अंतिम संस्कार भी माना जाता है। अघोर पंथ, जिसे प्राचीन भारतीय तांत्रिक परंपरा का हिस्सा माना जाता है, अपनी साधना और परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। अघोरियों का अंतिम संस्कार उनकी मान्यताओं और साधना से गहराई से जुड़ा होता है, और ये आम समाज की अंतिम संस्कार विधियों से बिल्कुल अलग है।
अघोरियों की अंतिम यात्रा
अघोरियों के अनुसार, मृत्यु केवल शरीर का त्याग है, आत्मा को मोक्ष की ओर ले जाने का मार्ग। उनका अंतिम संस्कार बेहद साधारण और प्रकृति से जुड़ा होता है।
- चिता का उपयोग नहीं:
अघोरियों का अंतिम संस्कार प्रायः गंगा या किसी पवित्र नदी के किनारे किया जाता है। उनके शरीर को जलाने की परंपरा आमतौर पर नहीं होती। - प्राकृतिक विलय:
कई बार उनके शरीर को बिना जलाए सीधे नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है। इसे “प्राकृतिक विलय” कहा जाता है, जो प्रकृति के चक्र का हिस्सा माना जाता है। - साधना के उपकरणों के साथ विदाई:
अघोरियों के शव के साथ उनकी साधना में उपयोग किए गए उपकरण, जैसे कपाल (खोपड़ी), भस्म (राख), और माला, भी रखे जाते हैं।
विशेष संस्कार विधियां
- कुछ अघोरियों का अंतिम संस्कार उनके शिष्यों द्वारा उनकी इच्छानुसार किया जाता है।
- यदि कोई अघोरी गहरे ध्यान या समाधि में मृत्यु को प्राप्त करता है, तो उसे समाधि स्थल बनाकर सम्मान दिया जाता है।
- ऐसी मान्यता है कि अघोरियों का शरीर भी “पवित्र” होता है, और इसे जलाने की बजाय सीधे प्रकृति को समर्पित करना उचित है।
अघोर परंपरा और समाज
अघोर पंथ समाज की आम धारणाओं से परे है। उनका विश्वास है कि जीवन और मृत्यु के बीच कोई बड़ा अंतर नहीं है। उनके लिए मृत्यु केवल एक “परिवर्तन” है।
- अघोरियों का अंतिम संस्कार न केवल उनकी परंपरा का हिस्सा है, बल्कि यह उनके आत्मा की मोक्ष यात्रा का प्रतीक भी है।
- उनके इस रहस्यमय और सरल जीवन के पीछे प्रकृति से जुड़ाव और भौतिकता से परे की सोच झलकती है।
अघोरियों का अंतिम संस्कार न केवल उनकी साधना और जीवनशैली का हिस्सा है, बल्कि ये उनके दर्शन और प्रकृति के साथ जुड़ाव का भी उदाहरण है। ये परंपरा हमें सिखाती है कि जीवन और मृत्यु, दोनों ही प्रकृति के चक्र का हिस्सा हैं।
“अघोर परंपरा: रहस्य, साधना, और मोक्ष की अनूठी यात्रा।”