हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों और पुराणों में मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा और यमराज द्वारा दी जाने वाली सजा का वर्णन मिलता है। इन ग्रंथों के अनुसार, व्यक्ति के कर्म उसके मृत्यु के बाद मिलने वाली सजा या मोक्ष को तय करते हैं।
यमलोक की यात्रा का उल्लेख
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो उसकी आत्मा यमदूतों के द्वारा यमलोक ले जाई जाती है। यमलोक, जहां यमराज न्याय करते हैं, वहां आत्मा के अच्छे और बुरे कर्मों का लेखा-जोखा रखा जाता है। इसे चित्रगुप्त नामक देवता लिखित रूप में प्रस्तुत करते हैं।
कर्मों के आधार पर सजा
यमराज के दरबार में आत्मा के किए गए पुण्य और पाप का न्याय होता है।
- पुण्य कर्म करने वालों को स्वर्ग भेजा जाता है, जहां उन्हें सुख और शांति मिलती है।
- पाप कर्म करने वालों को विभिन्न तरह की सजा दी जाती है, जिसे नरक यात्रा कहा जाता है।
नरक की सजाओं का वर्णन
धर्म शास्त्रों में 28 प्रकार के नरकों का उल्लेख है, जहां आत्मा को उनके कर्मों के अनुसार दंडित किया जाता है।
- तामिस्र: दूसरों की संपत्ति हड़पने वालों को इस नरक में भेजा जाता है।
- कू्म्भीपाक: मांसाहार करने वालों और निर्दोष जीवों की हत्या करने वालों को यहां उबलते तेल में डाला जाता है।
- अंधकूप: यहां पापी आत्मा को अंधकार में कैद रखा जाता है।
क्या सजा स्थायी होती है?
धर्म ग्रंथों के अनुसार, नरक में दी जाने वाली सजा स्थायी नहीं होती। यह आत्मा के कर्मों के आधार पर सीमित समय के लिए होती है। सजा पूरी होने के बाद आत्मा को पुनर्जन्म के लिए भेज दिया जाता है।
मोक्ष की राह
मोक्ष, यानी जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति, केवल सत्कर्म और भगवान की भक्ति से संभव है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, व्यक्ति को अपने जीवन में सच्चाई, दान, सेवा और धर्म का पालन करना चाहिए, ताकि यमराज के दरबार में उसे न्याय का सामना न करना पड़े।